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जिगर मुरादाबादी: मोहब्बत में ये क्या मक़ाम आ रहे हैं
चलते है हम शान से, बचाते हैं हम द्वेष से
पख्तूनों पर, गिलगित पर है ग़मगीन गुलामी का साया॥
बड़ी पुरानी, बड़ी नशीली नित्य ढला जाती हाला,
सुरा-सुप्त होते मद-लोभी जागृत रहती मधुशाला।।३७।
भगत सिंह, राणा प्रताप का बहता रक्त तुम्हारे तन more info में
बोल रहा इतिहास, देश सोये रहस्य है खोल रहा
उस कविता का एक अंश ऐसे है:
यहां पुरुषों में नारायण,नारी में भवानी है
द्रोणकलश जिसको कहते थे, आज वही मधुघट आला,
बस इसीलिए तो कहता हूँ आज़ादी अभी अधूरी है।
शेख, बुरा मत मानो इसको, साफ़ कहूँ तो मस्जिद को
राज्य उलट जाएँ, भूपों की भाग्य सुलक्ष्मी सो जाए,
सितारे जमीन पर लाने वाले, हम बच्चे है हिंदुस्तान के
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